राम कथा बलराज सिंह यादव धर्म एव अध्यात्म शिक्षक

सदगुन सुरगन अम्ब अदिति सी।


रघुबर भगति प्रेम परमिति सी।।


 ।श्रीरामचरितमानस।


  यह रामकथा सद्गुणरूपी देवताओं के उत्पन्न और पालन पोषण करने के लिए माता अदिति के समान है।यह रामकथा प्रभुश्री रामजी की भक्ति और प्रेम की परम सीमा सी है।


।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।


  भावार्थः---


  श्रीमद्भागवत में सद्गुणों का विस्तृत वर्णन है।यथा,,,


सत्यं शौचं दया क्षान्तिस्त्यागः संतोष आर्जवम्।


शमो दमस्तपः साम्यम् तितिक्षोपरति:श्रुतं।।


ज्ञानम् विरक्ति:ऐश्वर्यम् शौर्यम् तेजो बलम् स्मृति:।


स्वातंत्रयम् कौशलं कान्ति:धैर्यमं आर्दमेव च।


प्रागलभ्यम प्रश्रयः शीलं सह ओजो बलम्भग:।। आदि।


  अदिति दक्षप्रजापति की पुत्री व कश्यप ऋषि की पत्नी तथा सूर्य,इन्द्रादिक देवताओं की माता हैं।जिस प्रकार अदिति से ही देवताओं की उत्पत्ति हुई, उसी प्रकार रामकथा से शुभ गुणों की उत्पत्ति हुई है।जिस प्रकार अदिति के पुत्र देवता दिव्य व अमर हैं उसी प्रकार प्रभुश्री रामजी की कथा से उत्पन्न सद्गुण भी दिव्य और अमर हैं।जिस प्रकार माता अदिति अपने देवपुत्रों के हित में सदैव तत्पर रहती हैं उसी प्रकार यह रामकथारूपी माता भी सद्गुणों को उत्पन्न करके उन्हें अपने भक्तों के हृदय में स्थिर रखकर उनकी कलिमल से रक्षा करती है।सद्गुणों का वास्तविक फल तो भगवान की प्रेमाभक्ति है।इसी कारण गो0जी ने रामकथा को प्रेम और परमार्थ का सारतत्व कहा है।यथा,,,


रामनाम प्रेम परमारथ को सार रे।


रामनाम तुलसी को जीवन आधार रे।।


 श्रीरामचरितमानस प्रभुश्री रामजी की रामकथा का एक श्रेष्ठ ग्रँथ है।इसीलिये इसे प्रेमाभक्ति प्रदान करने वाला अनुपम ग्रँथ कहा जाता है और साथ ही इसे प्रभुश्री रामजी का ग्रन्थावतार भी कहा गया है।संवत1631 में जिस दिन गो0जी ने इस अनुपम ग्रँथ श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की थी,उस दिन योग,लग्न,ग्रह,वार, तिथि आदि सभी परिस्थितियां लगभग वही थीं जो रामजन्म के समय में थीं।इसीलिए श्रीरामचरितमानस को प्रभुश्री रामजी का ग्रन्थावतार कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है।


  भगवान शिव द्वारा रचित इस रामकथा का सभी देव,ऋषि,मुनि आदि प्रेमसहित गान करते हैं।यथा,,,


बार बार नारद मुनि आवहिं।


चरित पुनीत राम के गावहिं।।


नित नव चरित देखि मुनि जाहीं।


ब्रह्मलोक सब कथा कहाहीं।।


सुनि बिरंचि अतिशय सुख मानहिं।


पुनि पुनि तात करहु गुन गानहिं।।


सनकादिक नारदहि सराहहिं।जद्यपि ब्रह्म निरत मुनि आहहिं।।


जीवन्मुक्त ब्रह्मपर चरित सुनहिं तजि ध्यान।


जे हरि कथा न करहिं रति तिन्ह के हिय पाषान।।


।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।


।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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