दोहा
तुकांत बंद छंद कंद
बीत गया जो वह भुला, कर लोआज पसंद।
आज समय जो भी मिला, ले उसका आनंद।
जब अंधेरा था घना, सूरज करे प्रकाश।
बाहर आकर देख तो, क्यों है घर में बंद।
बाग में है फूल खिला, कलियां भी खिल रहीं।
महक रहा है बाग भी, फैली है सुगंध।
भटक रहा आज वन में, लेकर मन में द्वंद।
बीते दिन भी देख लो, अब तक खाकर कंद।
कविता मेरी प्रेयसी, कैसे हो श्रृंगार।
आत्मा इसके भाव हैं, है शरीर पर छंद।
माता मेरी सरस्वती, मुझको दे दो ज्ञान।
कैसे कर लूँ साधना, देखो मैं मति मंद।
रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर सी जी
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