पिता
पिता वृक्ष का जड़ है जिसपर,
शाखाओं का भार लदा
पिता महल का वह बुनियाद है,
जिसपर है ए मकान लदा
पिता रेल का वह इंजन है,
जिससे डिब्बे चलते हैं
पिता के मेहनत से ही देखो,
परिवार ये पूरे पलते हैं
पिता ईश हैं, पिता मित्र हैं
पिता ही मेरे सबकुछ हैं
एक अच्छा संस्कार सिखाया
पिता जी मेरे गुरुवर हैं
मेरे संग बचपन में खेले
और बहुत ही प्यार दिया
गलत काम जो हुआ कभी भी
मार दिया व सुधार दिया
एक पिता क्या-क्या है करता
पिता बनोगे ! जानोगे
पिता ने तो इतना सब है किया
क्या उनका कहना मानोगे?
पिता की कीमत उनसे पूछो
जिनके पिता जी नही रहे
पिता न रूठे पिता न छूटे
ऋचा हाथ जोड़ कहे
✍ऋचा
मिश्रा रोली
श्रावस्ती बलरामपुर
उत्तर प्रदेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें