पर्वत जैसा काया है
मोम सा हृदय समाया है
इस दुनिया के भाग दौड़ ने
ये हकीकत बताया है
जिसको अपना माना है
वहीं सबसे बेगाना है
जीवन का मकसद है
चलना और चलते जाना है
ढूंढते रब को सब जगह लोग
और कहते सब मे समाया है
पर्वत जैसा काया है
मोम सा हृदय समाया है
दुःख सुख अपने साथी है
दुःख दूल्हा तो सुख बराती हैं
आँखों मे आंसू, होठों पर मुस्कान
कैसे दोहमत में फाँसा इंसान
मोह माया में भटकते लोग
लोभ लालच का बुरा रोग
और क्रोध सबके जेहन में
अंदर तक समाया है
पर्वत जैसा काया है
मोम सा हृदय समाया है।
सम्राट की कविताएं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें