संजय जैन (मुम्बई

*गुलाब हो या दिल*


विधा : कविता


 


मेरे दिल में अंकुरित हो तुम।


दिलकी डालियों पर खिलते हो।


और गुलाब की पंखड़ियों की तरह खुलते हो तुम।


कोई दूसरा छू न ले तुम्हें


इसलिए कांटो के बीच


रहते हो तुम।


फिरभी प्यार का भंवरा कांटों


के बीच आकर छू जाता है।


जिससे तेरा रूप और भी निखार आता है।।


 


माना कि शुरू में कांटो से


तकलीफ होती है।


जब भी छूने की कौशिश


करो तो तुम चुभ जाते हो।


और थोड़ा दर्द दे जाते हो।


पर साथ ही तुझे पाने की


जिदको बड़ा देते हो।


और अपने पास ले आते हो।।


 


देखकर गुलाब का खिलारूप।


दिलमें बेचैनियां बड़ा देता है।


और पास अपने ले आता है।


रात के सपने से निकालकर।


सुबह होते ही पास बुलाता है।


और हंसता खिलखिलाता अपना चेहरा हमें दिखता है।।


 


मोहब्बत का एहसास गुलाब कराता है।


शान ए महफिलों की बढ़ाता है ।


शुभ अशुभ में भी 


भूमिका निभाता है।


तभी तो फूलदिवस भी मानवता है।


तभी तो गुलाब को हम


दिलों जान से चाहते है।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


22/06/2020


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