*आत्महत्या*
विधा : कविता
कुछ अपने और कुछ सपने,
हमे मजबूर कर देते है।
आत्महत्या जैसा घिनोना,
पाप करने को।
और जीवन को मिटा देते है,
कायरो की तरह से।
पर छोड़ जाते है माँबाप को,
मुर्दो की तरह जीने को।।
जिंदगी नाम शोहरत के लिए,
ही जी जाती है क्या।
बिना नाम शौहरत के क्या,
इंसान जीते नहीं है।
हौसले बुलंद हो तो,
हर जंग जीत सकते है।
बड़े बड़े नामवीरो को,
धूल चटा सकते है।।
समय विपरीत है तो भी,
जीत का सेहरा बांध सकते है।
और लाखो की भीड़ में,
अपनी पहचान बना सकते है।
माना कि लोग जलते है,
तेरी कामयाबी से।
इसलिए तुझे गिराने का,
निरंतर प्रयास करते है।।
छलकपटी से भरी पड़ी,
ये मायावी दुनियां है।
जहाँ कोई किसी का,
सगा सबंधी नहीं है।
जिसे मिलता है मौका,
वो ही लूट लेता है।
और कामयाबी के लिए,
अपनो पर पैर रख देते है।।
इंसान ही मजबूर कर देते है,
आत्महत्या करने को।
फिर उसकी मृत्यु पर,
घड़यली आंसू बहाते है।
और अपने कांटे को,
हटाकर खुश होते है।।
जय जिनेंद्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
21/06/2020
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