संजय जैन (मुम्बई

*दम न निकल जाये*


विधा : गीत


 


न वो कुछ कह सकते है,


न हम कुछ सुन सकते है।


दिलो की पीड़ा को हम,


व्या कर सकते नही।


लगी है आग सीने में,


बुझाए इसे किस तरह।


न वो कुछ कहते है,


न हम कुछ कहते है।।


 


मिली है जब से आंखे,


वो हंसती और रोती है।


पर दिल के धड़कने,


किसीसे कुछ नही कहती।


पर मानो दिल दोनों के,


धड़क रहे एकदूजे के लिए।


तभी तो दिल की बाते, 


आंखे से दोनों कहती है।।


 


करे क्या अब इस दिलका,


जो अब संभालता ही नही।


दवा कोई सी भी अब,


असर करती ही नही।


करे कब तक हम उनका,


इंतजार यहां पर आने का।


निकल न जाये दम मेरा,


बिना उनसे मिले ही।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


03/06/2020


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