संजय जैन (मुम्बई)

*मिलन का वियोग*


विधा : गीत


 


इस अस्त व्यस्त से, 


भरे माहौल में।


पत्नी बच्चे आशा, 


लागाये बैठी है।


की कब आओगें,


अपने घर अब तुम।


अब तो आंखे भी,


थक गई है।


तुम्हारे आने का,


इंतजार करते करते।।


 


महीनों बीत गए है,


तुम्हे देखे बिना।


बच्चे भी हिड़ रहे है,


तुमसे मिले बिना।


की कब आएंगे पापा, 


हम सब से मिलने।


तभी मम्मी का मुरझाया, 


चेहरा खिल जाएगा।।


 


पिया का वियोग, 


क्या होता है।


यह पतिव्रता नारी,  


समझ सकती है।


अपनी तन्हाईयो का,


जिक्र किससे कहे।


जब पति ही दूर हो तो,


अपनी व्यथा किससे कहे।।


 


इस अस्त व्यस्त भरे माहौल से,


कैसे मिले हमे छुटकारा।


कोई तो बताये जिससे,


मिल सके अपने परिवार से।


सबके शिकवे शिकायते,


हम दूर सके इस माहौल में।


और हिल मिलकर अब,


जी सके उनके साथ हम।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


20/06/2020


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...