सत्यप्रकाश पाण्डेय

प्राकृतिक दुरुपयोग ही,बना मनुज का काल।


चक्रबात जलप्रलय से,धरा हुई बेहाल।।


 


पर्यावरण शुद्ध करो, बनो प्रकृति के मित्र।


जीवन हो आनन्दमय, सुखी रहोगे मित्र।।


 


वृक्ष वंश कों नाश कर, नर कियो मरु प्रसार।


अतिवृष्टि या अनावृष्टि,सब नर कृत व्यवहार।।


 


अति भीषण सूरज हुओं, सह न सकै संसार।


ग्लेशियर पिघलने लगे,निशदिन हाहाकार।।


 


धूलधूसरित नभ हुओ,कैसे लेवे सांस।


वन्यजीव अब लुप्त हो,छोड़ें जीवन आस।।


 


नदियों के अस्तित्व मिट,मिटा धरा श्रृंगार।


जीवन दायिनी रेखा, भूल गई उपकार।।


 


विश्व पर्यावरण दिवस पर


🌹🌹🌹🌹🍁🍁🍁🌸


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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