सत्यप्रकाश पाण्डेय

चांद..............


 


न जाने छिप गया, कई दिनों से चांद कहाँ मेरा।


नहीं खिल पाया है, सत्य का कमोद रूप चेहरा।।


 


घेर लिया उसको न जाने, किन मेघ मालाओं ने।


या फिर मोह लिया उसे, कहीं सुर बालाओं ने।।


 


बिना आलोक उसके न, मुझे कुछ भी सुहाता है।


हर पल मुझे तो उसका, बस सौंदर्य याद आता है।।


 


लगता हुआ चांद बेबफा, जिसकी प्रीति नहीं मुझसे।


उसे मालूम नहीं शायद, कितनी मुहब्बत है उससे।।


 


बिना उसके छाया रहता, अब दिन भी में अंधेरा।


वही तो है जिंदगी मेरी, वही जीवन का सवेरा।।


 


उस चांद में तो दाग है, पर बेदाग है चांद मेरा।


जब हो जाता दीदार तो, खिलता हृदय सुमन मेरा।।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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