अदभुत चितवन देखके,
भूल गये भव ताप।
मुरलीधर की मोहिनी,
हर लीन्हे संताप।।
जगतपिता तेरी कृपा,
सत्य हृदय कूं फूल।
सुरभित हुए तन मन प्रभु,
जग लागे अनकूल।।
मोर मुकुट की सौम्यता,
अधरन की मुस्कान।
हरे बांस की बांसुरी,
करें अलंकृत प्राण।।
रूप सौंदर्य के धनी,
मुरलीधर घन श्याम।
ज्योती बन हिय में जलें,
जीवन हो अभिराम।।
श्रीकृष्णाय नमो नमः 👏👏👏👏👏🍁🍁🍁🍁🍁
सत्यप्रकाश पाण्डेय
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