मिटने लगें दूरियां,.........
कैसे करें हम
दर्दे बयां
जो अपनों से मिला
पलक पांवड़े
बिछाये जिनके लिए
उन्ही ने हमें छला
लगे रहे उन्हें
मनाने हम
ता जिंदगी
वो दूरियां बढाते गये
न दी खुशी
दे रहे बन्दगी
निराली है तेरी बनाई
यह दुनियां
मेरे स्वामी
खेल खिलाते
बनाते किसी को मिटाते
जानी न जानी
बस अब न सह पाऊंगा
निर्ममता
अपनों की
कोई तो बताओ राह
मिटने लगें दूरियां
सपनों की।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
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