कमजोर कहां हो तुम नारी?
तुम भरती हो नभ में उड़ान,
संचालित करती रेल यान,
घर की थामें हो तुम कमान,
हर गुण है तुममें विद्दमान
जीवित करती हो सत्यवान,
ममता का गुण सबसे महान।
तुम नया जन्म ले लेती हो
जब बन जाती हो महतारी
कमजोर कहां हो तुम नारी।
मन प्रेम छलकता सागर है,
अंतस करुणा की गागर है।
अमृत रसधार बहे आंचल,
हर पीड़ा सहती हो अविचल।
जीवन में अनुपम धीर भरा।
है नयन नेह का नीर भरा।
तुम देहरी का जलता दीपक
घर घर में तुमसे उजियारी।
कमजोर कहां हो तुम नारी?
मन में नित भाव समर्पण है।
हर रूप प्रेम का दर्पण है।
प्रियतम की संग सहचरी हो
मां रूप बाल की प्रहरी हो।
मन क्षमा दया उर त्याग लिए,
प्रति पल जीती अनुराग लिए।
तुम ईश्वर की सुंदर रचना
यह सृष्टि सृजन तुमसे जारी
कमजोर कहां हो तुम नारी?
युग से इतिहास लिखा तुमने
वीरों को नित्य जनां तुमने।
नित नीर बहाना छोड़ो तुम
अन्याय भुलाना छोड़ो तुम
तुम उमा,रमा हो ब्राम्हणी,
तुम झांसी वाली हो रानी।
शमशीर उठा संहार करो
डाले कुदृष्टि जो व्यभिचारी
कमजोर कहां हो तुम नारी?
सीमा शुक्ला अयोध्या।
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