शिवानंद चौबे जौनपुर

बारहिं बार बयारि झकोरत दीपक त्यागत न जलना रे।


सूरज चाँद निरन्तर धावत त्यागत न गति न चलना रे।


शूर की चाह पड़े पग पाछ न कायर चाह रही छलना रे।


अंकुर फोरि पहार कढ़ें अस पूत के पाँव दिखें पलना रे।।


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