एक सोरठा सादर निवेदित..
सोरठा:-
तन-मन देता वार, अपने सुत पर जो पिता।
हो जाता है भार, वृद्धावस्था में वही।।
शिवेन्द्र मिश्र 'शिव'
कड़वा है पर सत्य है..
कुंडलिया छंद:-
मात-पिता व्याकुल बहुत,और हुए लाचार।
नही आजकल अब कहीं, बेटे श्रवण कुमार।।
बेटे श्रवण कुमार, करें अपनी मनमानी।
मिले न रोटी दाल, और ना सुत से पानी।
कहता 'शिव' दिव्यांग, दुखी हरदम वो रहता।
कभी स्वप्न में कष्ट, पिता-मां को जो देता।।
शिवेन्द्र मिश्र 'शिव'
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