💥💥💥💥💥
योग पर कुछ दोहे
💥💥💥💥💥
करे चित्त की वृत्ति का, है निरोध ये योग।
दृष्टा को निज रूप में , स्थित कर दे योग ।।
आठ अंग हैं योग के , पातंजलि अनुसार।
सबकी महिमा एक सी, ज्ञानी कहें विचार।।
प्रथम पंच 'यम' हैं यहां, सत्य,अहिंसा,संग।
ब्रह्मचर्य , अस्तेय भी , अपरिग्रह के संग ।।
'नियम' पांच भी अंग है, शौच और संतोष।
स्वाध्याय कर ,तप करें, ईश शरण मंतोष।।
अब तृतीय जो अंग है,उसका"आसन" नाम।
हो जाए जब सिद्घ तो, पूर्ण सभी हों काम ।।
चौथा तीन प्रकार के , " प्राणायाम" महान ।
सांस सांस जब सिद्ध हो,योग बने आसान।।
पंचम " प्रत्याहार" है , करें विषय सब दूर ।
इन्द्रिय सब निज चित्त वश,अंकुश हो भरपूर
षष्ठम अंग है " धारणा" कठिन बहुत ये काम।
मन को स्थिर कीजिए, हर पल आठों याम ।।
सप्तम अंग जो "ध्यान" है, चित्त लगे इक तार।
जो योगी का ध्येय हो , उस पर सब निस्सार ।।
इन सातों को साधिए, अष्टम मिले "समाधि"।
मोक्ष और कैवल्य दे, हर कर हर भव व्याधि।।
परम शक्ति को नमन है,दे हम सब को ज्ञान।
होकर योग प्रवीण हो , आर्यावर्त महान ।।
योग दिवस है आज ये,सब के लिए विशेष।
सभी सुखी हों विश्व में , ये कामना अशेष ।।
श्रीकांत त्रिवेदी
💐
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें