श्रीमती रूपा व्यास,

प्रस्तुत है,मेरी स्वरचित कविता,आप सभी के अवलोकनार्थ-


          शीर्षक-'मज़दूर की मजबूरी'


 


अब तो पत्थर पर भी नींद आ जाती है।


जैसे माँ की गोद की आदत छूट जाती है।।


 


मुख पर दर्द,बेबसी,मायूसी,मजबूरी ओढ़े हुए बस ये चले जा रहे हैं।


कभी दूध मिल जाता है तो कभी भूखे ही चलते जा रहे हैं।।


 


सबकुछ सहन हो जाता है।


लेकिन बच्चों के चेहरे देख रोना आता है।


बच्चों को कभी माँ की गोद का सहारा।


तो कभी पिता की अंगुली और कंधे तो कभी पत्थर भी,फिर भी मज़दूर कभी न हारा।।


 


मज़दूरों की मजबूरी न काम मिल रहा,न घर जा पा रहे।


कई के तो जीवन रेल की पटरियों पर ही खत्म होते जा रहे।


चाहे शहर राजस्थान का हो या झारखंड या बिहार या यू.पी या एम.पी का।


आज यह दर्दनाक दृश्य सभी जगह का।।


 


तस्वीरें ब्लैक एंड व्हाइट से कलरफुल हो गई।


लेकिन 73 वर्ष के बाद पलायन की त्रासदी फिर से वहीं की वहीं हो गई।।


 


सवाल उठता है, मेरे मन में-


इतने ईंतज़ामों के बाद भी ये सड़क पर क्यों है?


क्या इसलिए कि ये मजबूर,'मज़दूर'हैं।।


 


नाम-श्रीमती रूपा व्यास,


पता-व्यास जनरल स्टोर,दुकान न.07,न्यू मार्केट, 'परमाणु नगरी'रावतभाटा, जिला-चित्तौड़गढ़(राजस्थान) पिन कोड-3233007


अणुडाक-


rupa1988rbt@gmail.com


दूरभाष(व्हास्टसप न.)-9461287867,


9829673998


                   -धन्यवाद-


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