दोहे
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1
कुमुदबन्धु को देख कर,खिले कुमुद- तालाब।
धवल दूधिया चाँदनी,नयन- सजन के ख्वाब।।
2
आज शर्म से जा छुपे,सभी बिलों में व्याल ।
अतिशय विषधर हो गया,मनुज ओढ़ कर खाल।।
3
अर्णव बनने के लिए ,बहती सरि दिन -रात।
अकर्मण्य नर आलसी,कब होते विख्यात।।
4
कंचन की है मुद्रिका,माणिक जड़ी अमोल।
निरख रूपसी रूप निज,बैठी करे किलोल।।
5
बने कामिनी भामिनी,बने काल का गाल।
कामी, कपटी कापुरुष ,डाले जब छल- जाल।।
6
ज्ञान-विभा -विग्रह का,करो पुण्य नित काज।
तमस मिटे अज्ञान का,शिक्षित बने समाज।।
7
सकल सृष्टि है आपसे,आप सृष्टि के अक्ष।
हरि विपदा हर लीजिए,विनती करें समक्ष।।
8
दिनकर ने दर्शन दिए ,बीत गयी है रात।
कंचनमय धरती हुई,सुखमय हुआ विभात।
9
एक अम्बुजा रागिनी,कर्णप्रिया है खास।
एक सरोवर में खिले,एक विष्णु के पास।
10
करके कर्म महान नर,बन जाता महनीय।
देव तुल्य दर्ज़ा मिले,सदा रहे नमनीय।।
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