कविता:-
*"अन्त"*
"ऐसा कर्म करे ये तन-मन,
मिटे जीवन का अंधेरा।
छाये न कोई गम की बदली,
पल-पल हो खुशियों का डेरा।।
संवारे जीवन पथ ऐसा,
फिर बन जाये जीवन माली।
महक जाये पग-पग फूलो से,
यहाँ टूटे न कोई डाली।।
छाये हरियाली जीवन में,
जग में ऐसा आये बसंत।भक्ति संग परोपकार में,
चाहे जब हो जीवन का अन्त।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःः
20-06-2020
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