सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


          *"अन्त"*


"ऐसा कर्म करे ये तन-मन,


मिटे जीवन का अंधेरा।


छाये न कोई गम की बदली,


पल-पल हो खुशियों का डेरा।।


संवारे जीवन पथ ऐसा,


फिर बन जाये जीवन माली।


महक जाये पग-पग फूलो से,


यहाँ टूटे न कोई डाली।।


छाये हरियाली जीवन में,


जग में ऐसा आये बसंत।भक्ति संग परोपकार में,


चाहे जब हो जीवन का अन्त।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःः


         20-06-2020


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...