कविता:-
*"मन"*
"सोचता रहा मन बावरा,
कैसे-बीते यहाँ जीवन?
आहत मन की भावना फिर,
क्यों- समझे न पागल मन?
भूले बीते पल को यहाँ,
कहाँ-मान सका फिर ये मन?
बढ़ता आक्रोश तन-मन में,
कब-तक सह सके उसको तन?
बने न विकृति मन में यहाँ,
पल-पल चाहता रहा मन।
रह मौन इस जीवन में फिर,
पाये राहत कुछ आहत मन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 02-06-2020
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