कविता:-
*"चाहत"*
"चाहत जागी मन में ऐसी,
मैं भी देखूँ सपने ऐसे।
ख़ुशियों को भर ले आँचल में,
बगिया महके जग में जैसे।।
सपने-सपने न रहे साथी,
उनको भी कर ले सच ऐसे।
बनी रहे तृष्णा जीवन में,
संग-संग प्रभु की भक्ति जैसे।।
छाये न विकार जीवन में फिर,
बना रहे ये तन-मन ऐसे।
जीवन चमके पल-पल ऐसे,
देख रहे हो दर्पण जैसे।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.m
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 05-06-2020
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