कविता:-
*"सवेरा"*
"दीप से दीप जला नेह के,
इतना कर दो उजियारा।
जीवन में फिर साथी कोई,
रहे न नफ़रत का डेरा।।
जीवन पथ पर जग में फिर से,
होगा ऐसा सवेरा।
छाये न कोई गम की बदली,
होगा ख़ुशियों का डेरा।।
इतना त्याग करना जग में,
बना रहे नेह का फेरा।
कैसी-आये गम की बदली,
घेरे न जीवन सवेरा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 28-06-2020
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