सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


 


  *"न मन हारे-न तन हारे"*


 


"सोचे पल-पल मन जग में,


कैसे-बीते ये जीवन?


देखे सपने बचपन में,


आदर्श होगा ये जीवन।।


टूटे सपने मन के सारे,


क्यों-वो अपनो से हारे?


छूटे जब सभी सहारे,


फिर पहुँचे वो प्रभु द्वारे।।


 


दूर हो दु:ख मन के सारे,


जैसे-जैसे प्रभु नाम पुकारें।


प्रभु भक्ति में डूबा जो मन,


न मन हारे-न तन हारे।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 22-06-2020


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