कविता:-
*"योग"*
"नित योग करने से ही,
निर्मल होता-
तन-मन।
निर्मल तन-मन से ही,
होती भक्ति-
प्रभु बसते मन।
मन बसे प्रभु भक्ति जो,
सार्थक होता-
ये जीवन।
योग करें निरोगी बने,
तन-मन बन जाये-
दर्पण।
विकार नहीं जीवन में,
सत्य-पथ पर-
सबका मिलता समर्थन।
नित योग करने से ही,
निर्मल होता-
तन-मन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 21-06-2020
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