सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


  *"भक्ति की देन"*


"रास्ते अलग-अलग देखो,


मगर मंज़िल तो एक है।


आस्थाएं अलग-अलग ये,


लेकिन- शक्ति तो एक है।।


देखे भक्त अलग-अलग वो,


लेकिन-भक्ति तो एक है।


रूप अलग-अलग जग में तो,


लेकिन-ईश्वर तो एक है।।


सोघता रहा मन बावरा,


कैसी-जग को देन है।


भक्त हो कर विभक्त ये जग,


क्या-ये भक्ति की देन है?"


ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 15-06-2020


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...