जीवन में तिश्नगी को जगाए हुए हैं हम।
बस आस एक तुमसे लगाए हुए हैं हम।
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कोई गुनाह राहे मुहब्बत में हो गया।
तो सामने ये सर भी झुकाए हुए हैं हम।
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जब जी करे चले आना मेरी गली में तुम।
अब भी शम्मे मुहब्बत जलाए हुए हैं हम।
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अरमानों को मेरे न हवा इस तरह से दो।
दिल के सभी चराग बुझाए हुए हैं हम।
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मत तोड़ आइना मेरे दिल का ये साफ सा।
इसमें तो अक्स तेरा। सजाए हुए हैं हम।
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सुनीता असीम
३/६/२०२०
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