सुनीता असीम

अनसुनी इक पुकार थे हम तो।


दुश्मनों में शुमार थे हम तो।


***


वो ही कीमत नहीं समझ पाया।


रूह से शानदार थे हम तो।


***


दिल में रक्खी भड़ास थी कितनी।


इक भरा सा गुबार थे हम तो।


***


बेजुबानी बनी बयानी जब।


प्यार का फिर उतार थे हम तो‌।


***


फूल बंजर पे भी खिला होता।


यार दिल से बहार थे हम तो।


***


सुनीता असीम


५/६/२०२०


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