अनसुनी इक पुकार थे हम तो।
दुश्मनों में शुमार थे हम तो।
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वो ही कीमत नहीं समझ पाया।
रूह से शानदार थे हम तो।
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दिल में रक्खी भड़ास थी कितनी।
इक भरा सा गुबार थे हम तो।
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बेजुबानी बनी बयानी जब।
प्यार का फिर उतार थे हम तो।
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फूल बंजर पे भी खिला होता।
यार दिल से बहार थे हम तो।
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सुनीता असीम
५/६/२०२०
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