सुनीता असीम

खूबसूरत से नज़ारे तो हिजाबों में मिले।


इश्क करने की अदा सिर्फ नबावों में मिले।


*†*


काम करने में खुशी उतनी नहीं मिलती है।


वो मजा और खुशी सिर्फ ख़िताबों में मिले।


***


वो परी एक कहानी की हसीना माना।


ऐसी परियाँ तो कथा और किताबों में मिले।


***


मय का प्यासा तो दिवाना सा ठिकाना खोजे।


उसकी मंजिल तो उसे सिर्फ शराबों में मिले।


***


जितनी कविता औ ग़ज़ल हमने लिखीं हैं अब तक।


उनका चिट्ठा तो किताबों के हिसाबों में मिले।


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सुनीता असीम


१७/६/२०२०


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