चल बरसते बादलों का आज हम पीछा करें।
आसमाँ के पार से पानी वो बरसाया करें।
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ग़म रहे हैं जिन्दगी का सिर्फ हिस्सा ही यहाँ।
आप बस रोकर या हसकर के इन्हें चुकता करें।
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जिन्दगी की साजिशें हम तो कभी समझे नहीं।
सुख यहां थोड़े रहे दुख बारहा बरपा करें।
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इक दिया रोशन करो फिर रोशनी भरपूर हो।
अब अंधेरों से नहीं हम आज समझौता करें।
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इब्तिदा ए इश्क में घायल हुई है आशिकी।
बात करके यार की दिल को नहीं गन्दा करें।
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सुनीता असीम
२०/६/२०२०
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