सुनीता असीम

चल बरसते बादलों का आज हम पीछा करें।


आसमाँ के पार से पानी वो बरसाया करें।


***


ग़म रहे हैं जिन्दगी का सिर्फ हिस्सा ही यहाँ।


आप बस रोकर या हसकर के इन्हें चुकता करें।


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जिन्दगी की साजिशें हम तो कभी समझे नहीं।


सुख यहां थोड़े रहे दुख बारहा बरपा करें।


***


इक दिया रोशन करो फिर रोशनी भरपूर हो।


अब अंधेरों से नहीं हम आज समझौता करें।


***


इब्तिदा ए इश्क में घायल हुई है आशिकी।


बात करके यार की दिल को नहीं गन्दा करें।


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सुनीता असीम


२०/६/२०२०


 


 


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