सुनीता असीम

गीतिका 


 


हिज्र के पालने में सुलाना नहीं।


आशिकी में हमें यूँ रूलाना नहीं।


*****


देख बढ़ती हुई दूसरों की खुशी।


आप अपना कभी दिल जलाना नहीं।


*****


 लो ग़रीबों की तुम तो दुआएँ सदा।


बेवजह ही किसी को दबाना नहीं।


**** 


जख्म अपने हमेशा रखो तुम हरे।


पर इन्हें दूसरों को दिखाना नहीं।


*****


टूट जाते हैं रिश्ते बढ़ें दूरियां।


ख़ार रिश्तों में अपने बढ़ाना नहीं।


*****


हो गईं हों अगर गलतियाँ कुछ बड़ी।


बात कोई बड़ों से छिपाना नहीं।


*****


दर्द-ए- दिल बढ़ा जा रहा है मेरा।


और इसको सुनो तुम बढ़ाना नहीं।


*****


खूब होते रहे हादसे शह्र में।


तुम मगर इनका बनना निशाना नहीं।


*****


रंजिशे ग़म बढ़े जा रहे इस क़दर।


बच रहा आज इनसे जमाना नहीं।


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सुनीता असीम


२२/६/२०२०


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