गीतिका
हिज्र के पालने में सुलाना नहीं।
आशिकी में हमें यूँ रूलाना नहीं।
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देख बढ़ती हुई दूसरों की खुशी।
आप अपना कभी दिल जलाना नहीं।
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लो ग़रीबों की तुम तो दुआएँ सदा।
बेवजह ही किसी को दबाना नहीं।
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जख्म अपने हमेशा रखो तुम हरे।
पर इन्हें दूसरों को दिखाना नहीं।
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टूट जाते हैं रिश्ते बढ़ें दूरियां।
ख़ार रिश्तों में अपने बढ़ाना नहीं।
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हो गईं हों अगर गलतियाँ कुछ बड़ी।
बात कोई बड़ों से छिपाना नहीं।
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दर्द-ए- दिल बढ़ा जा रहा है मेरा।
और इसको सुनो तुम बढ़ाना नहीं।
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खूब होते रहे हादसे शह्र में।
तुम मगर इनका बनना निशाना नहीं।
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रंजिशे ग़म बढ़े जा रहे इस क़दर।
बच रहा आज इनसे जमाना नहीं।
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सुनीता असीम
२२/६/२०२०
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