वो चल दिए यहां सभी रातें गुजार के।
लगता है ले चले हों वो मौसम बहार के।
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चलते चले गए हो दीं आवाज भी तुम्हें।
अब थक गया गला मेरा तुमको पुकार के।
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टूटा हुआ बदन मेरा औ इश्क का सितम।
आसार दिख रहे हैं सभी ये बुखार के।
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आओ चले भी आज मुहब्बत के वास्ते।
कुछ हाल पूछ लो मेरे जैसे बिमार के।
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छिनने लगा है चैन दिले बेकरार का।
टूटे हैं तार आज कई इस सितार के।
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सुनीता असीम
४/६/२०२०
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