सुनीता असीम

वो चल दिए यहां सभी रातें गुजार के।


लगता है ले चले हों वो मौसम बहार के।


***


चलते चले गए हो दीं आवाज भी तुम्हें।


अब थक गया गला मेरा तुमको पुकार के।


****


टूटा हुआ बदन मेरा औ इश्क का सितम।


आसार दिख रहे हैं सभी ये बुखार के।


***


आओ चले भी आज मुहब्बत के वास्ते।


कुछ हाल पूछ लो मेरे जैसे बिमार के।


***


छिनने लगा है चैन दिले बेकरार का।


टूटे हैं तार आज कई इस सितार के।


***


सुनीता असीम


४/६/२०२०


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...