इश्क की मदिरा पिलाते जाइए।
हुस्न को आशिक बनाते जाइए।
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जिन्दगी जब है हमारी चार दिन।
क्यूं भला इसको गंवाते जाइए।
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जिन्दगी की है डगर मुश्किल बढ़ी।
मुश्किलों को बस हराते जाइए।
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इक हसीना शोख सी है ज़िन्दगी।
लाड़ इसके सब लड़ाते जाइए।
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चीज कैसी बेमुरव्वत इश्क ये।
रूठते औ बस मनाते जाइए।
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सुनीता असीम
८/६/२०२०
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