सुषमा दीक्षित शुक्ला

बड़ी शातिर है तनहाई ,


 ये अकेली ही चली आई।


 


 देखो तुम्हारी याद तो लाई


 कहीं तुम को छुपा आई ।


 


 दे रही एक खत इसको ,


लिखा था प्यार से जिसको।


 


इसे तुम ठीक से पढ़ना ,


जिसे पहले न दे पायी ।


 


कलम से दिल के टुकड़ों की,


 अपने अरमा पिरोये हैं ।


 


 ढुलकते अश्क स्याही बन ,


 आज खत को भिगोए हैं ।


 


किए हैं आज वो शिकवे ,


जिन्हें अब तक छुपा लाई।


 


 इसे तुम ठीक से पढ़ना ,


जिसे पहले न दे पायी ।


 


 बह रही ही देख लो रिमझिम,


 मेरे नैनों की बरसातें ।


 


हर घड़ी याद आती हैं ,


तुम्हारे प्यार की बातें ।


 


झरी बरसात अंखियों से,


वही खत को बहा लायी ।


 


 इसे तुम ठीक से पढ़ना ,


 जिसे पहले ना दे पायी ।


 



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