तुम ही मेरे सावन थे
तुम थे बसन्त मेरे तुम ही मेरे सावन थे ।
तुमसे ही हर मौसम था सब कुछ तुम साजन थे ।
तुम से ही तो जगमग इस घर की दीवाली थी ।
तुम सँग ही तो खेली वो सांचे रँग की होली थी।
वो सुबहें कितनी प्यारी जब थे तुम्हे जगाते ।
पर कभी कभी तो तुम ही चाय बना कर लाते ।
वो शामें कितनी प्यारी जब साथ घूमने जाते ।
कभी कभी मोबाइल पर घर के समान लिखाते ।
हर छुट्टी वाले दिन हम सबको कहीँ घुमाते ।
खाना, पिक्चर ,शॉपिग तुम जी भर प्यार लुटाते ।
हम सब अक्सर साथ साथ मंदिर जाया करते थे ।
जब इक दूजे के खातिर फरियाद किया करते थे ।
साथ बैठ कर टी वी जब हम देखा करते थे ।
घर के सारे प्लांनिग जब साथ किया करते थे ।
पल पल जब फोन तुम्हारा आता ही रहता था ।
तब हर कोई तुमको दीवाना ही कहता था ।
तुम थे बसन्त मेरे तुम ही मेरे सावन थे ।
तुम से ही हर मौसम था ,सब कुछ तुम साजन थे ।
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