सुषमा दीक्षित शुक्ला

तुम ही मेरे सावन थे 


 


 तुम थे बसन्त मेरे तुम ही मेरे सावन थे ।


तुमसे ही हर मौसम था सब कुछ तुम साजन थे ।


 


तुम से ही तो जगमग इस घर की दीवाली थी ।


तुम सँग ही तो खेली वो सांचे रँग की होली थी।


 


वो सुबहें कितनी प्यारी जब थे तुम्हे जगाते ।


पर कभी कभी तो तुम ही चाय बना कर लाते ।


 


वो शामें कितनी प्यारी जब साथ घूमने जाते ।


कभी कभी मोबाइल पर घर के समान लिखाते ।


 


हर छुट्टी वाले दिन हम सबको कहीँ घुमाते ।


खाना, पिक्चर ,शॉपिग तुम जी भर प्यार लुटाते ।


 


हम सब अक्सर साथ साथ मंदिर जाया करते थे ।


जब इक दूजे के खातिर फरियाद किया करते थे ।


 


साथ बैठ कर टी वी जब हम देखा करते थे ।


घर के सारे प्लांनिग जब साथ किया करते थे ।


 


पल पल जब फोन तुम्हारा आता ही रहता था ।


तब हर कोई तुमको दीवाना ही कहता था ।


 


तुम थे बसन्त मेरे तुम ही मेरे सावन थे ।


तुम से ही हर मौसम था ,सब कुछ तुम साजन थे ।


 


         


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