सुषमा दिक्षित शुक्ला

रोम रोम में शिव हैं जिनके ,


विष पिया करते हैं ।


 


दुख दर्द जला क्या पाएगा ,


जो अंगारों से सजते हैं ।


 


मां सती बिछड़कर जब शिव से,


 सन्ताप अग्नि में समा गई।


 


 प्रायश्चित पूरा होते ही ,


फिर मिलन हुआ जब उमा हुई।


 


सागर मंथन का गरल पान ,


देवों को अमृत सौंप दिया ।


 


सोने की नगरी रावण को 


खुद पर्वत पर्वत वास किया।


 


 सारे जग को देखे वैभव ,


पर खुद वो भस्म रमाते हैं।


 


वो महाकाल,वो शिव शंकर,


 वो भोलेनाथ कहाते हैं ।


 


सच्ची निष्ठा के बलबूते,


 शिव शंकर का अनुराग मिले ।


 


फिर उनका तांडव क्रुद्ध रूप,


 भोले भाले शिव में बदले ।


 


कुछ विधि का लिखा हुआ,


 होता,कुछ कर्मो का फल होता ।


 


सब दुख भूलो शिव भक्त बनो,


 वही है सबके परमपिता ।


 


रोम रोम में शिव है जिनके ,


 विष वहीपिया करते हैं ।


 


दुख दर्द जला क्या पाएगा,


 जो अंगारों से सजते हैं।


 



कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...