सुषमा सिंह कानपुर 

"थोड़ी सी मेहनत"11


आज फिर ससुर जी ने जूट के दो थैलों में सब्जी खरीदी और साइकिल के दोनों हैंडल में टांग कर धीरे-धीरे साइकिल चलाते हुए घर पहुंचे।


थैलों कोटेबल पर रखकर कुर्सी पर बैठते हुए बोले,पानी ले आओ!


सासू जी पानी देने के बाद थैले की सब्जी का मुआयना करने लगी।


"कितनी बार कहा है जी!सब्जियाँ पॉलीथिन मे रखकर तब थैले में डाला करो पर तुम सुनो तब न,अब एक घण्टा सब्जियाँ अलग करने में लग जायेगा।


पर पॉलीथिन से निकालकर डलिया में रखने में भी तो टाइम लगता है!ससुर जी ने समझाते हुए कहा।


क्या टाइम लगता है?पॉलीथिन फाड़ी सब्जी डलिया में पलट कर डस्टबिन में डाल दी हो गया।अब ये एक एक अलग करो बैठकर।


पर् वो पॉलीथिन डस्टबिन के बाद कहाँ जाएगी कभी इस बारे में सोचा है?


कल एक गाय के पेट से 5 किलो पॉलीथिन निकाली गई है, इन सबके ज़िम्मेदार भी तो हम ही हैं ।वैसे भी दूध-ब्रेड,चाय -बिस्किट, तेल -मशाले आदि सब पॉलीथिन में ही तो लाते हैं, वो सब क्या कम है जो सब्जियाँ भी पॉलीथिन में लाई जाएं, जहाँ काम नही चल सकता वहां मज़बूरी है पर जब काम चल सकता है तो ऐसे ही ले आया।


इसी बहाने पर्यावरण संरक्षण में थोड़ा योगदान हो जाएगा।


हमारे साथ"थोड़ी सी मेहनत"कर लोगी तो पर्यावरण संरक्षण में तुम्हारा भी योगदान हो जाएगा।


"माँ जी आप रहने दीजिए मैं सब्जियाँ अलग कर लूंगी ,इसी बहाने पर्यावरण संरक्षण में थोड़ा योगदान हमारा भी हो जाएगा।"बहू ने चाय टेबल पर रखते हुए कहा तो दोनों मुस्करा उठे ।


©®


डॉ सुषमा सिंह


कानपुर 


मौलिक व अप्रकाशित


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