भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"कविता "*(ताटंक छंद गीत)


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विधान - १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SSS, युगल पद तुकांतता।


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●अभिव्यक्ति कोमल भावों की, प्रबोधनी-परिभाषा है।


उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।


विचार-अनुभूति-कल्पना है, करती शमित पिपाशा है।


उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।


 


●स्पंदन-अविरल मानव-मन का, मर्यादा है भावों की।


है कविता आलेख दुःख-सुख का, औषधि भी यह घावों की।।


सपनों के सोपान सजाये, आतुर-मन की आशा है।


उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।


 


●है यह स्वर्णिम-भोर सुहाना, प्रखर-किरण रवि की भी है।


है आभास-रेशमी कविता, शीतलता शशि की भी है।।


आत्मा की आवाज़-सुहानी, कविता नहीं निराशा है।


उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।


 


●भाव-अमल अभिमान-प्रबल है, कविता रस की धारा है।


इससे जग आलोकित होता, शोषित-लोक-सहारा है।।


प्रक्षालन कर कुरीति कविता, हरे हरेक हताशा है।


उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।


 


●सच-सच कविता के दर्पण में जग प्रतिबिंबित होता है।


जीवन-चिंतन दिशा-बोध से, मन आलोकित होता है।।


शोषित-जन में शक्ति संचरे, कविता वह प्रत्याशा है।


उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।


 


●छंदों का संसार-सुहाना, कवि-छवि-झलक दिखाती है।


पावन-विचार-चिंतन-सरिता, जन-जन को सरसाती है।।


अविरल सुरभित यह पुरवाई, कविता प्रेमिल-भाषा है।


उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।


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भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


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