*"कविता "*(ताटंक छंद गीत)
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विधान - १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SSS, युगल पद तुकांतता।
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●अभिव्यक्ति कोमल भावों की, प्रबोधनी-परिभाषा है।
उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।
विचार-अनुभूति-कल्पना है, करती शमित पिपाशा है।
उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।
●स्पंदन-अविरल मानव-मन का, मर्यादा है भावों की।
है कविता आलेख दुःख-सुख का, औषधि भी यह घावों की।।
सपनों के सोपान सजाये, आतुर-मन की आशा है।
उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।
●है यह स्वर्णिम-भोर सुहाना, प्रखर-किरण रवि की भी है।
है आभास-रेशमी कविता, शीतलता शशि की भी है।।
आत्मा की आवाज़-सुहानी, कविता नहीं निराशा है।
उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।
●भाव-अमल अभिमान-प्रबल है, कविता रस की धारा है।
इससे जग आलोकित होता, शोषित-लोक-सहारा है।।
प्रक्षालन कर कुरीति कविता, हरे हरेक हताशा है।
उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।
●सच-सच कविता के दर्पण में जग प्रतिबिंबित होता है।
जीवन-चिंतन दिशा-बोध से, मन आलोकित होता है।।
शोषित-जन में शक्ति संचरे, कविता वह प्रत्याशा है।
उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।
●छंदों का संसार-सुहाना, कवि-छवि-झलक दिखाती है।
पावन-विचार-चिंतन-सरिता, जन-जन को सरसाती है।।
अविरल सुरभित यह पुरवाई, कविता प्रेमिल-भाषा है।
उपकार-त्याग-तप-वंदन है, कविता शुभ अभिलाषा है।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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