मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज*

*गीत..* 


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अंधभक्ति में मानव देखो,


बुद्धि विसंगति धरता है।


छप्पन भोग चढ़े मंदिर में,


द्वार रुदन शिशु करता है।


 


      भौतिकता आधारित जीवन,


           सबके मन को भाता है।


      मौलिकता को भूल गए सब,


            दम्भ दिखावा आता है।


          भक्त कर रहे कैसी पूजा ,


          जिससे जीवन मरता है।।


 


अंधभक्ति में मानव देखो,


बुद्धि विसंगति धरता है।


छप्पन भोग चढ़े मंदिर में,


द्वार रूदन शिशु करता है।।


 


     सृष्टि समर्पित भाव लिए जब,


             सबको जीवन देती है।


            दाता है बस देना जाने,


         वापस कुछ क्या लेती है।


  सार समझ लो भाव सृजन का,


         दुख ही सबका हरता है।।


 


अंधभक्ति में मानव देखो।


बुद्धि विसंगति धरता है।


छप्पन भोग चढ़े मंदिर में,


द्वार रुदन शिशु करता है।।


 


      दीन- हीन की देख दशा को,


          धनवानों कुछ तो सोचो।


    वाह्य रूप से शोषित जन का,


             अन्तर्मन तो मत नोचो।


           एक धरा के बालक सारे,


        फिर क्यूँ रूह सिहरता है।।


 


अन्धभक्ति में मानव देखो


बुद्धि विसंगति धरता है।


छप्पन भोग चढ़े मंदिर में,


द्वार रूदन शिशु करता है।।


 


      पाषाणों को पूज रहे हो, 


         जीव धरा तरसाए हो।


      मात दुग्ध से जीवन देती,


         व्यर्थ धार बरसाए हो।


   भोग लगाओ भूखे जन को,


       उससे नेह निखरता है।।


 


अंधभक्ति में मानव देखो।


बुद्धि विसंगति धरता है।


छप्पन भोग चढ़े मंदिर में,


द्वार रुदन शिशु करता है।।


 


      देवों का आशीष मिलेगा,


           भूखा गर मुस्काएगा।


        भूखे का जब पेट भरेगा,


         भोग ईश तक जाएगा।


       मत भूलों सभ्यता हमारी,


         वेद- पुराण सँवरता है।


 


अंधभक्ति में मानव देखो,


बुद्धि विसंगति धरता है।


छप्पन भोग चढ़े महलों में,


द्वार रूदन शिशु करता है।।


 


     ऐसा भोग लगा दो मिलकर,


           दरश स्वयं ही पा जाए।


        भूखा एक न हो धरती पर,


         क्षुधा सभी की मिट पाए।


        मंदिर अंदर शिशु विहँसता,


           देख नरायण वरता है।।


 


अंधभक्ति में मानव देखो,


बुद्धि विसंगति धरता है।


छप्पन भोग चढ़े मंदिर में,


द्वार रुदन शिशु करता है।।


*मधु शंखधर स्वतंत्र*


*प्रयागराज*


*9305405607*


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