भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग

*"मातु-महान"* (दोहे)


^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


^स्नेह सिक्त पीयूष को, मातु-पिला संतान।


अर्पित कर निज रक्त को, देती जीवन दान।।१।।


 


^पावन पय पीयूष पी, सुख सरसित संतान।


हुलसित माता अंक में, धन्य मातु-अवदान।।२।।


 


^उपजे पीकर क्षीर को, शिशु के मानस-मोद।


माता मन ममता महत, स्वर्गिक सुख माँ-गोद।।३।।


 


^मातु सकल ब्रह्मांड है, सरस-सुधा-संसार।


जीव-जगत जनु जान-जन, ममता-अपरंपार।।४।।


 


^अमिय-कलश है मातु-वपु, मानस ममता-मूल।


पान अमिय माँ का करे, सकल मिटे शिशु-शूल।।५।।


 


^होकर अति कृशगात माँ, श्रम साधित मन-क्लांत।


पान करा फिर भी अमिय, करे क्षुधा-शिशु शांत।।६।।


 


^मातु-सुधा-सद्भाव से, सरसे सुख-संसार।


प्रेम पले पीयूषपन, पातकपन-परिहार।।७।।


 


^स्नेह सजीवन सार शुचि, सरसित सुधा समान।


बोली माँ के नेह की, फूँके जग-जन-जान।।८।।


 


^माँ देती संतान को, ममता की सौगात।


अमिय-सरिस माँ-दूध पी, बढ़ता शिशु-नवजात।।९।।


 


^माता जीवन दायिनी, अमिय कराती पान।


शिशु का संबल है वही, जग में मातु-महान।।१०।।


^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...