बह्र 2122 2122 212
काफ़िया - ए स्वर
रदीफ़ - के लिए
खुशनुमा हरपल बनाने के लिए।
छोड़ दे जीना ज़माने के लिए।
जब कज़ा की राह पर थी ज़िन्दगी।
आए तब अपना बनाने के लिए।
चाहिए कुछ बेहया सी ख़्वाहिशें ।
ज़िन्दगी का ग़म भुलाने के लिए।
हसरतें भी बेवफा होने लगी।
मनचले दिल को जलाने के लिए।
आ गया वो ख़्वाब में फ़िर से मेरे।
रात भर मुझको सताने के लिए।
आरजू है तू मेरी तू जुस्तजू।
दिल मचलता तुझ को पाने के लिए।
आ गया सब बंदिशों को तोड कर।
साथ अब उत्तम निभाने के लिए।
©@उत्तम मेहता 'उत्तम'
१४/२०
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