दूर बहुत है लक्ष्य
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दूर बहुत है लक्ष्य परन्तु रूक मत जाना,
रूक जाएं तो बहुत कठिन है उसको पाना ।
श्रम से बहे स्वेद की धारा यही ठीक है,
नही काम आता जीवन मे कोई बहाना।
बदल वृत्ति को त्याग पाप की छाया को,
नही सरल है इन चीजों का भार उठाना।
व्यथा भूख की कभी कहां सह पाया कोई,
अगर हो सके तो भूखे की भूख मिटाना ।
जिन रिश्तों पर आशाओं के दीप जले,
छोड़ मनुज उपक्रम से अपने उसे बुझाना।
जिनके पांव धरातल पर नही टिके कभी भी,
उसे पड़ेगा समरांगण मे मुहकी खाना ।
विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-878
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