विनय साग़र जायसवाल

गीत--प्रदूषण 


 


कोई प्रहरी काश लगा दे ,ऐसा भी प्रतिबंध ।


किसी ओर से बिखर न पाये ,धरती पर दुर्गंध ।।


 


दिया हमीं ने नागफनी या बबूल को अवसर 


क्यों बैठे हम शाँत रहे सोचा कभी न इस पर


कभी तो कारण खोजो आये कैसे यहाँ सुगंध ।।


किसी ओर से------


 


गुलमोहर कचनार पकडिया आम नीम पीपल


आज चलो हम निश्चय कर के बोयें छाँव शीतल


वातावरण न दूषित हो सब खायेंं यह सौगंध ।।


किसी और से -------


 


जीवन में यह मधुर कल्पना होगी तब साकार 


इक दूजे पर दोषारोपड़ छोड़े यह संसार 


जुड़े हुए हैं इक दूजे से सुख दुख के संबंध।।


किसी ओर से------


 


आज हमारे मन में है कितनी घोर निराशा 


तिमिर कुण्ड में डूब गई जीवन की हर आशा 


विश्वासों से टूट गये हैं अपने सब अनुबंध ।।


किसी ओर से--------


 


*साग़र* थे विज्ञान जगत में हम ही सबसे आगे


ज्ञान धरोहर संजो न पाये कितने रहे अभागे 


हमने कभी लिखा तो होता अपना यहाँ निबंध ।।


किसी ओर से -------


कोई प्रहरी----------


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


16/3/2002


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