विनय साग़र जायसवाल

गीतिका (हिन्दी में)


 


तुमने जो निशिदिन आँखों में आकर अनुराग बसाये हैं 


हम रंग बिरंगे फूल सभी उर-उपवन के भर लाये हैं


 


हर एक निशा में भर दूँगा सूरज की अरुणिम लाली को 


बाँहों में आकर तो देखो कितने आलोक समाये हैं


 


प्रिय साथ तुम्हारा मिलने से हर रस्ता ही आसान हुआ


हम विहगों जैसा पंखों में अपने विश्वास जगाये हैं 


 


जब -जब पूनम की रातों में तुझसे मिलने की हूक उठी


तेरे स्वागत में तब हमने अगणित उर-दीप जलाये हैं 


 


दिन रात छलकते हैं दृग में तेरे यौवन के मस्त कलश 


तू प्यास बुझा दे अंतस की जन्मों से आस लगाये हैं 


 


कैसी मधुशाला क्या हाला तेरे मदमाते नयनों से 


हम पी पीकर मदमस्त हुये अग -जग सब कुछ बिसराये हैं 


 


उस पल क्या मन पर बीत गयी मत पूछो *साग़र* तुम हमसे


तुमने जब जब व्याकुल रातों में गीत विरह के गाये हैं 


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


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