विनय साग़र जायसवाल

गीत---🧚‍♀


🌲


तेरी सुगंध को लालायित,हर सुमन यहाँ अकुलाता है ।


अधरों पर मेरे नाम प्रिये  ,तेरा जब-जब आ जाता है ।।


🌱


जब खिलते हैं सुधि के शतदल, जब उड़ता दृग-वन में आँचल


हर निशा अमावस की लगती, हर दिवस बजी दुख की साँकल 


यह प्रेमनगर का द्वार मुझे,कैसे परिदृश्य दिखाता है ।।


तेरी सुगंध को------


🦚


प्यासे चातक मन-अधरों पर ,पूनम भी किंचित खिली नहीं 


अंतस में ज्वाला भड़का कर ,फिर साँझ दिवस से मिली नहीं


रह-रह कर मेरे अंतर का,हर कमल पुष्प कुम्हलाता है ।।


तेरी सुगंध को------


🦜


आशायें अमरलता बनकर, वट यौवन भी डस जाती हैं


कुछ पता नहीं इच्छाओं का ,


किसको क्या स्वाद चखाती हैं


यह मलय पवन भी अब प्राय: , ज्वाला को और बढ़ाता है ।।


तेरी सुगंध को ----


🦃


घिर आये फिर नभ में बादल, फिर दूर बजी कोई पायल 


फिर कोई मेरे जैसा ही , हो जायेगा दुखिया घायल


यह सोच सोच कर अब मेरा ,पागल मन भी घबराता है ।।


तेरी सुगंध को -------


🐇


यह सावन आग लगाते हैं, व्याकुल मन को तड़पाते हैं


मेरे नव चेतन पर *साग़र*, सुधियों के चित्र बनाते हैं


यह सावन मुझको तड़पा कर,क्या जाने क्या सुख पाता है ।।


🦓


तेरी सुगंध को-------


अधरों पर मेरे--------


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


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