*"जाना होगा छोड़"*
(कुण्डलिया छंद)
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●आया जो संसार में, जाना निश्चित जान।
मेहमान सब हैं यहाँ, चार दिनों का मान।।
चार दिनों का मान, गर्व कर मत इठलाना।
जिसका जैसा कर्म, सभी को है फल पाना।।
कह नायक करजोरि, जोड़ लो जितनी माया।
जाना होगा छोड़, यहाँ जो भी है आया।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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