लखनऊ, दिनांक 12 जुलाई 2020,
आज सायं 5 बजे से सुप्रसिद्ध संस्थाओं " के रुप में एक वृहद काव्य गोष्ठी द्वारा मनाया गया। अध्यक्ष वरिष्ठ गीतकार डा अजय प्रसून, मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि श्री कन्हैयालाल एवं विशिष्ठ अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती नवलता श्रीवास्तव थीं तथा संचालन कवि व्यंग्यकार मनमोहन बाराकोटी "तमाचा लखनवी" एवं सुमधुर वाणी वन्दना विख्यात कवियित्री श्रीमती रेनू द्विवेदी ने की। कलमकार दिवस पर सभी कवियों ने क्रान्ति जी के प्रति अपनी अपनी रचनाओं के साथ साथ उनके जीवन से जुड़े हर पहलू पर मंगलकामनाएं बधाई दीं।
वाणी वन्दना के पश्चात हास्य-व्यंग्य के युवा कवि राजीव पंत की यह रचना खूब सराही गईं --
इन्सान हो गया बौना, जब से आया कोरोना।
सैनिटाइजर से हाथ धोये, जो जाने न हाथ धोना।।
भोजपुरी के ससक्त हस्ताक्षर कवि कृष्णानन्द राय का पर्यावरण पर यह गीत-
फिर से अब एक बाग लगा दो।
जो सोये हैं उन्हें जगा दो।।
धपू से राहत मिल जायेगी।
फल जनता हरदम पायेगी।।
तरह-तरह के पौध मंगा दो। --
ने खूब तालियां बटोरते हुए कार्यक्रम को नई दिशा प्रदान की।
अत्यावश्यक निजी कार्य के कारण वरिष्ठता क्रम को तोड़ते हुए हुए संचालक ने मुख्य अतिथि कन्हैयालाल जी को कविता पाठ के लिए आमंत्रित किया। कन्हैयालाल जी की सावन ऋतु पर सुन्दर कविता-
सुहावन सावन स्वागत में
धरा ने किया साज श्रृंगार
विखेरा मादक पुष्प सुगंध
पाकर रिमझिम सुखद फुहार।।
सुहावन सावन स्वागत में....
ने ढेर सारी वाह वाही बटोरी।
श्रीमती अलका अस्थाना के इस गीत ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।----
सावन दुबके दुब् के आया
देखो गजब संदेशा लाया
मशहूर ग़ज़ल एवं गीतकार आहत लखनवी ने अपने सुमधुर कण्ठों से अनेकों छन्दों से प्रशंसा एवं खूब तालियां बटोरीं। उनका रुचिरा छंद की यह कविता काफी प्रशंसनीय रही -----
हरि ने थामा राधा-कर, तब नैन झुके धड़कीं छतियाँ
कंपित उर के कोने में, होती मन से मन की बतियाँ
राधा निज में ही सिमटी, जब अंक भरा हरि ने झट से
श्याम भुजंग समाय गया, तत्क्षण मानो राधा-लट से
सुप्रसिद्ध कवियित्री रेनू द्विवेदी ने बहुत सुन्दर सुन्दर गीतों एवं ओज की कविताओं से ढेर सारी प्रशंसा एवं तालियां बटोरीं, उन्होंने पढ़ा-
जिस पर गर्वित सारी दुनिया,
संस्कृति वही पुरानी हूँ!
अंगारों से खेल चुकी हूँ,
झांसी वाली रानी हूँ!
संचालन कर रहे पहरु संस्था के अध्यक्ष एवं लक्ष्य संस्था के उपाध्यक्ष मनमोहन बाराकोटी "तमाचा लखनवी" ने पढ़ा --
दीप जलते रहें- तम को छलते रहें,
हम मचलते रहें, रोशनी के लिए।
गीत गाते रहें- गुनगुनाते रहें,
इस धरा के लिए, इस जमीं के लिए।।
विशिष्ठ अतिथि वरिष्ठ कवियित्री श्रीमती नव लता जी ने नवयुवकों में चेतना का नया संचार करते हुए पढ़ा कि --
तिमिर पर आलोक का अभियान,
तुम सोए पड़े हो!
निशा की अवसान वेला में
कहाँ खोए पड़े हो!
उठो, जागो, और उठ कर
दूसरों को भी जगाओ।।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सुप्रसिद्ध वरिष्ठ गीतकार एवं गज़लकार डॉ. अजय प्रसून जी ने आशीर्वचन के रूप में अपने इस गीत से वातावरण को रसमय कर दिया --
आंधियों तूफान झंझावात के मारे नहीं हैं।
हम अभी हारे नहीं हैं
हम अभी हारे नहीं हैं।।
अन्त में दोनों संस्थाओं की ओर से मनमोहन बाराकोटी "तमाचा लखनवी" सभी अतिथियों कवियों कवियित्रियों का आभार ज्ञापित किया।
- मनमोहन बाराकोटी
अध्यक्ष "पहरु" संस्था एवं उपाध्यक्ष "लक्ष्य" संस्था
मनमोहन बाराकोटी जी द्वारा लिखित काव्य गोष्ठी का विस्तृत समाचार!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें