पेड़ों को रहे हैं काट जंगलों को रहे छांट
दुष्ट पापियों को भला कौन समझायेगा ।
एक कलाधारी जीव का हैं पद पाये वृक्ष
सृष्टि का सुरम्य भाव कौन उमगायेगा।
मेघों के समूह को ये करते आकर्षित हैं,
हरी भरी भूमि भला कौन सरसायेगा।
आनन्द हैं कर रहे विनय पुकार आज
वृक्ष बिन जीवन को कौन हुलसायेगा।।
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