एक सामायिक कुण्डलिया
जीवन के इस दौर में, संकट बढ़ता जाय।
कैसे सब इससे बचे, सूझै नही उपाय।
सूझै नही उपाय, पेट भूखे है सारे।
महँगाई बढ़ रही, आय है राम सहारे।
कहत 'अभय' समुझाय, हौसला रखिए सब जन।
मानो हर कानून, बचेगा तब ये जीवन।
अवनीश त्रिवेदी"अभय"
प्रस्तुत है एक सावनी मत्तगयंद सवैया
सावन की ऋतु है मनभावन खूब फ़ुहार पड़े मनुहारी।
बादल छाइ रहे नभ में बरसे घनघोर घटा कजरारी।
कंत बिना उर चैन मिले नहि रैन न बीति रही अब भारी।
धीर धरी नहि जाति सुनो अब आइ हरौ दृग प्यास हमारी।
अवनीश त्रिवेदी 'अभय'
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