भरत नायक "बाबूजी"

भरत नायक "बाबूजी"


2- माता का नाम- स्व. चम्पादेवी नायक


 पिता का नाम- स्व. अभयराम नायक


सहधर्मिणी का नाम- श्रीमती राजकुमारी नायक


संतान- श्रीमती रजनी बाला चौधरी (बडी- पुत्री)


दुष्यंत कुमार नायक (छोटा- पुत्र)


3- स्थाई पता- लोहरसिंह, रायगढ़ (छ.ग.), पिन- 496100


4- मो. नं.- 9340623421


5- जन्म तिथि- 11- 06- 1956


जन्म स्थल- लोहरसिंह, रायगढ़ (छ.ग.)


6- शिक्षा- स्नातकोत्तर (हिंदी, समाज शास्त्र), बी. टी., रत्न


7- व्यवसाय- सेवा निवृत्त व्याख्याता


8- प्रकाशित रचनाओं की संख्या- पंच शताधिक


9- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या- साझा संकलन- तीस, एकल- एक ("भोर करे अगवानी"- छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह)


10- काव्य पाठ का विवरण- दिल्ली सहित देश के विभिन्न भागों के सैकड़ों मंचों पर काव्य पाठ अध्यक्षता, मुख्य आतिथ्य,विशेष आतिथ्य एवं आकाशवाणी से प्रसारण।


11- सम्मान का विवरण- छ. ग. शासन, प्रशासन एवं भा. द. सा. अकादमी नयी दिल्ली से डॉ. अम्बेडकर फैलोशिप सम्मान, अखिल भारतीय राष्ट्रीय कवि संगम छत्तीसगढ़ इकाई से वरिष्ठ साहित्यकार दिनकर सम्मान के साथ शताधिक विभिन्न सम्मान एवं अभिनंदन ।


12- लेखन- हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी भाषा में स्वतंत्र लेखन।


प्रतिनिधित्व- नवोन्मेष रचना मंच घरघोड़ा, रायगढ़ का संस्थापक अध्यक्ष, कला कौशल साहित्य संगम छत्तीसगढ़ का संस्थापक/अध्यक्ष, भरत साहित्य मंडल, लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.), अनेक साहित्यिक पटलों एवं साहित्यानुरागियों का मार्गदर्शन।


13- Email ID- bharatlalnaik3@gmail.com


...............................


 


१ - 


*शारदे! शुभ वरदान दे*


(गगनांगना छंद)


--------------------------------------------


विधान- १६+ ९= २५ मात्रा प्रतिपद, पदांत SlS, युगल पद तुकांतता।


-------------------------------------------


*शब्दों के संयोजन को माँ! सरगम-तान दे।


अतुल-अमल-अवधान शारदे! शुभ वरदान दे।।


साथ साधना के हिय सच्चा, भावन-भान दे।


घन-तम-अज्ञान नाश कर माँ! प्रभा-प्रतान दे।।


 


*स्वर- सुर समृद्ध सदा होवे, वर विश्वास दे।


शुचि-तुंग-तरंग-उमंग नयी, नित आभास दे।।


जड़ता का कर विनाश मन से, उर-उल्लास दे।


माता! हरकर संताप सभी, हृदय-हुलास दे।।


 


*बहा ज्ञान-गंगा कल्याणी, कर कल्याण दे।


संसार सकल सुखमय कर दे, भय से त्राण दे।।


जीवन का पथ आलोकित हो, ज्योति-प्रमाण दे।


जग-जीवन-धुन अनुरागित हो, पुलकित प्राण दे।।


 


*पुस्तक प्रतीक पुण्य-पाठ का, है तव हाथ में।


वीणा की धुन संदेश सदा, सुखकर साथ में।।


ज्ञान-विवेकी नीर-क्षीर का, भर दे माथ में।।


डोले जब धीरज तो देना, संबल क्वाथ में।।


 


*वेद-शास्त्र-उपनिषद सर्जना, ग्रंथ महान दे।


श्लोक-सूक्ति कल्याणी-कविता, नित नव गान दे।।


बुद्धि-प्रखर कर, हंसवाहिनी! परिमल ज्ञान दे।


परिपूरित झिलमिल तारों से, व्योम-वितान दे।।


****************************


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


*******************


 


२ - 


*माँ का अस्तित्व* (रोला छंद) -------------------------------------------


विधान- ११ एवं १३ मात्रा पर यति के साथ प्रतिपद २४ मात्रा, चार चरण, युगल पद तुकांतता। 


................................................


 


*माँ है जग-आधार, इसी में विश्व समाये।


माँ के बिन उपकार, जनम कोई कब पाये ??


पीकर माँ का दूध, छाँव ममता की पाये ।


जग में है विख्यात, किसे माता न सुहाये ??


 


*माँ तो है वरदान, हरे वह विपदा सारी।


सृष्टि-वृष्टि हर दृष्टि, मातु की प्यारी-न्यारी।।


ऋद्धि-सिद्धि हर तुष्टि, अतुल है अपार है माँ ।


विश्व-विशद-प्रतिरूप, स्वयं ही विहार है माँ ।।


 


*माँ तो सतत दयालु, काज हर करती पूरा ।


करती है माँ पूर्ण, पिता का प्यार अधूरा ।।


बुरी बला दे टाल, लगाती काला टीका।


पूजा की है थाल, ऋचा वेदों-सम नीका।।


 


*साँसों का सुरताल, हृदय में बन रहती है।


निज संतान-शरीर, रुधिर बनकर बहती है।।


जग-उपवन में फूल, बनी है सुगंध भी माँ ।


भाले निज परिवार, नेक है प्रबंध भी माँ ।।


 


*माँ का जो है त्याग, सोच लो मन में अपना।


क्यों लेते हो छीन? मातु का सुंदर सपना।।


जो है निज भगवान, मान दो माँ को आओ ।


जानो जग का तीर्थ, मातु-पद माथ-झुकाओ ।।


------------------------------------


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


------------------------------------


 


३ - 


*"अपना देश महान "*(सरसी छंद गीत)


****************************


विधान-16+ 11= 27 मात्रा प्रतिपद, पदांत Sl, युगल पद तुकांतता।


****************************


*लहराता है ध्वजा-तिरंगा, भारत की है शान।


लाख नमन है इस मिट्टी को, अपना देश महान।।


देश हमारा प्यारा-न्यारा, इस पर है अभिमान।


लाख नमन है इस मिट्टी को, अपना देश महान।।


 


*धोता पाँव सदा सागर है, मुकुट हिमालय माथ।


जीवनदायी बहतीं नदियाँ, प्रगति-लहर के साथ।।


हरियाली से खुशहाली का, मिला विमल वरदान।


लाख नमन है इस मिट्टी को, अपना देश महान।।


 


*बहती सुरसरि है शुचिता की, रवितनया सम भाव।


सरस्वती-सत्संगति मिलती, रहे न द्वेष-दुराव।।


है सच संगम गहन-गुणों का, देव-लोक प्रतिमान।


लाख नमन है इस मिट्टी को, अपना देश महान।।


 


*वीरों की यह धरा पुनीता, अमल अमोलक भान।


जाए जान न मान गँवाये, शूर-सुधीजन खान।।


मुस्लिम गीता गा सकते हैं, हिंदू पढ़ें कुरान।


लाख नमन है इस मिट्टी को, अपना देश महान।।


 


*समरसता का सागर लहरे, हो नित नव शुचि भान।


इस मिट्टी पर मिट जायेंगे, रक्षित करने आन।।


"नायक" जप-तप-योग-भजन में, हो भारत-गुणमान।


लाख नमन है इस मिट्टी को, अपना देश महान।।


**************************


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


*******************


 


४ - 


*"गंगा जीवनदायिनी"* (वर्गीकृत दोहे)


*****************************


¶गंगा जीवन दायिनी, धरती का शृंगार।


शैल-सुता अवदान से, है जग-जन-उद्धार।।1।।


(16गुरु,16लघु वर्ण, करभ दोहा)


 


¶गंगा है अति पावनी, मनुज करे निष्पाप।


हरती है अघनाशिनी, दैहिक-दैविक ताप।।2।।


(15गुरु,18लघु वर्ण, नर दोहा)


 


¶आयी लेकर स्वर्ग से, पावन-परिमल धार।


जल से धरती सींचकर, सतत करे उद्धार।।3।।


(13गुरु,22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


 


¶गंगोत्री से निकलकर, बहे नगर-वन-ग्राम।


गंगा सागर में मिले, गंगासागर धाम।।4।।


(15गुरु,18लघु वर्ण, नर दोहा)


 


¶बहती जाती है जहाँ, लगे स्वर्ग का भान।


मिट्टी करके उर्वरा, देती जीवन-दान।।5।।


(18गुरु,12लघु वर्ण, मण्डूक दोहा)


 


¶कठिन भगीरथ दिव्य तप, प्रण का है परिणाम।


मर्म महत मंदाकिनी, धायी धरती धाम।।6।।


(13गुरु, 22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


 


¶धाम त्रिवेणी बन बसा, संगम राज-प्रयाग।


पावन गंगा स्नान से, जीवन हो बेदाग।।7।।


(16गुरु, 16लघु वर्ण, करभ दोहा)


 


¶पावन गंगा ध्यान धर, लो परलोक सुधार।


कल्पवास कर माघ में, हो भवसागर पार।।8।।


(14गुरु, 20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


 


¶गंगाजल के पान से, मोक्ष मिले तन-प्राण।


माता है भवतारिणी, करती है कल्याण।।9।।


(17गुरु, 14लघु वर्ण, मर्कट दोहा)


 


¶गंगा में विष घुल रहा, चिंतन की है बात।


मानवकृत यह आपदा, जैविक जीवन घात।।10।।


(14गुरु, 20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


 


¶सरिता दूषित हो रही, करना गहन विचार।


गंगा के उद्धार से, मानव का उद्धार।।11।।


(16गुरु, 16लघु वर्ण, करभ दोहा)


 


¶अमिय सरिस सुरसरि सलिल, पावन परम प्रबोध।


गंगाजल पर हो रहे, नित-नित नूतन शोध।।12।।


(8गुरु, 32लघु वर्ण, कच्छप दोहा)


 


¶सुरसरि शोधन सोच पर, केन्द्रित हो अवधान।


महत जगत-कल्याण का, गंगा है वरदान।।13।।


(12गुरु, 24लघु, पयोधर दोहा)


 


¶धो लो मन के मैल को, क्या होगा कर जाप?


मन की गंगा साफ हो, मिटे सकल संताप।।14।।


(17गुरु,14लघु वर्ण, मर्कट दोहा)


 


¶गंगा महज नदी नहीं, है देवी-प्रतिमान।


"नायक" हर्षित हिय करो, माता के गुणगान।।15।।


(15गुरु, 18लघु वर्ण, नर दोहा)


*****************************


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


*******************


 


५ - 


*"महत्तम माता ममता"*


(कुण्डलिया छंद)


****************************


* गोदी माँ की चाहते, देव, मनुज, भगवान।


पालनहारे भी पले, माता का रख मान।।


माता का रख मान, जन्म धरती पर पाते।


पूरण करते काज, मातु का मान बढ़ाते।।


कह नायक करजोरि, कृपा माँ की मन-मोदी।


तरसे सकल जहान, पुनीता माँ की गोदी।।


*****************************


¶सह लेती हर कष्ट को, माता रहकर मौन।


जीती हित संतान के, माँ से बढ़कर कौन??


माँ से बढ़कर कौन? भान ईश्वर का जानो।


तेज-तपस्या-त्याग, रूप माँ का पहचानो।।


कह नायक करजोरि, समर्पित सुख कर देती।


माँ जीवन-आधार, दुःख चुपके सह लेती।।


*****************************


¶पावन माँ का नाम है, करती सबका त्राण।


सुख देती है दुःख हर, करती है कल्याण।।


करती है कल्याण, पुण्य पग पावन परिमल।


उमगत उदधि उदार, स्नेह शुचि निर्झर छल-छल।।


कह नायक करजोरि, ईश से बढ़ मनभावन।


प्रणतपाल प्रतिमान, पूज्य माँ-शुभ पद पावन।।


****************************


¶ममता-मर्म महान-महि, मातु महत मणि मान।


मुकुलित-मुखरित मातु-मन, महके मनः मकान।।


महके मनः मकान, मोम-मन मानो-माता।


मान मातु-मंतव्य, मोद मानस-मुस्काता।।


मंगल (नायक) मुद मन-मोर, मुदित-मति मान-मचलता।


मोहक-मधु-मकरंद, महत्तम माता-ममता।।


****************************



लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


*******************


 


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...